पति की दीर्घायु की कामना का पर्व है करवा चौथ, जाने विधि और शुभ मुहूर्त


अखंड सौभाग्य की कामना का व्रत करवा चौथ है, यह अत्यंत ही शुभ दिन के रूप में प्रत्येक वर्ष हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व की रौनक कई दिन पहले से ही आरंभ हो जाती है। इस दिन का इंतजार प्रत्येक विवाहित स्त्री को होता है। जो उत्तर भारत समेत देश के कई हिस्सों में सुहागन और कुंवारी युवतियां विधि विधान से रखती हैं। भारत में यह पर्व मुख्य रूप से देश के उत्तरी राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में धूमधाम के साथ मनाया जाता है।  हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, करवा चौथ व्रत हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। चतुर्थी तिथि में चंद्रमा का उदय होना महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस व्रत में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही पति के हाथों पारण किया जाता है। तभी व्रत को पूर्ण मानते हैं। करवा चौथ के दिन माता पार्वती, भगवान शिव, गणेश जी, भगवान कार्तिकेय और चंद्रमा की पूजा करने का विधान है। करवा चौथ का व्रत निर्जला रखा जाता है। जागरण अध्यात्म में जानते हैं कि इस वर्ष करवा चौथ व्रत कब है, इसकी सही तिथी क्या है, पूजा मुहूर्त और चन्द्र अर्घ्य का समय क्या है।

करवा चौथ मुहूर्त -

हिन्दू पंचांग के अनुसार करवाचौथ पूजा मुहूर्त : 17 बजकर 43 मिनट से 18 बजकर 50 मिनट तक,

अवधि :1 घंटे 7 मिनट,

करवाचौथ चंद्रोदय समय :20 बजकर 07 मिनट तक,

करवाचौथ में अत्यंत शुभ योग -

करवा चौथ का दिन अत्यंत ही शुभ दिन के रूप में प्रत्येक वर्ष हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व की रौनक कई दिन पहले से ही आरंभ हो जाती है। इस दिन का इंतजार प्रत्येक विवाहित स्त्री को होता है। इस वर्ष करवाचौथ के दिन एक विशेष शुभ योग बनेगा। चंद्रमा का रोहिणी नक्षत्र में गोचर होगा। चंद्रमा के रोहिणी नक्षत्र में होने को ज्योतिष शास्त्र में अत्यंत ही महत्वपूर्ण एवं शुभ समय माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चंद्रमा को अपनी सभी पत्नियों में रोहिणी अत्यंत प्रिय थी। रोहिणी और चंद्रमा के मध्य प्रेम इतना गहरा और अटूट है, जिसका प्रभाव चंद्रमा के रोहिणी नक्षत्र में आने पर स्वत: ही देखने को मिलता है। इस समय पर चंद्रमा की शुभता का विस्तार होता है। ऐसे में करवा चौथ के दिन यह शुभ संयोग वैवाहिक जीवन को शुभता एवं सौभाग्य प्रदान करने वाला होगा।

करवा चौथ का महत्व -

करवाचौथ शब्द दो शब्दों के मेल से बना है। पहला शब्द है करवा, जिसका अर्थ होता है मिट्टी से बना बर्तन। जबकि चौथ से आशय चतुर्थी तिथि से है। मान्यता है कि करवा का प्रयोग जीवन में सुख-समृद्धि को दर्शाता है। इस व्रत का विवाहित महिलाओं को बेसब्री से इंतज़ार रहता है, ताकि वे पूरे विधि विधान के साथ अपने जीवनसाथी के सुखी जीवन की कामना कर सकें। करवाचौथ पति-पत्नी के बीच एक प्रेम और विश्वास से परिपूर्ण अटूट बंधन को दर्शाता है।

करवाचौथ व्रत के नियम -

करवाचौथ का व्रत एक अत्यंत ही शुभ दिन होता है इस दिन स्त्रियां प्रात: काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर व्रत का आरंभ करती हैं। नित्य कर्मों से निवृत होकर, सम्पूर्ण शिव-परिवार (शिव, पार्वती, नंदी, गणेश और कार्तिकेय जी) की पूजा की जाती है। पूजन के समय देव-प्रतिमा का मुख पश्चिम की तरफ़ होना चाहिए तथा स्त्री को पूर्व की तरफ़ मुख करके बैठना चाहिए। इस दिन पूजा सामग्री में करवे का मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। एक करवे में पानी भरकर, करवा चौथ का चित्र बनाया जाता है अथवा चित्र लाकर पूजा स्थल पर रखा जाता है और समस्त सौभाग्य की वस्तुओं को वहां रखा जाता है। इसी के साथ प्रसाद रूप में मिष्ठान-फल इत्यादि भी रखे जाते हैं । सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हुए संध्या काल समय में पूजा व कथा की जाती है इसके पश्चात चंद्र दर्शन एवं पूजन किया जाता है इसके पश्चात पूजन पूर्ण माना जाता जाता है।

मेहंदी -

करवाचौथ में मेहंदी का विशेष महत्व माना जाता है। मेहंदी को भाग्य का प्रतीक माना जाता है। भारत में ऐसी मान्यता है कि यदि किसी लड़की के हाथों में मेहंदी का रंग गहराई से चढ़ता है तो उसका पति अथवा प्रेमी उसे उतना ही प्रेम करता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि हाथों में मेंहदी का गाढ़ा रंग पति की दीर्घायु और उसके स्वस्थ्य जीवन को दर्शाता है। हाथों में मेहंदी रचाने की परंपरा महिलाओं के श्रृंगार का हिस्सा है। इससे उनकी सुंदरता में चार चाँद लग जाते हैं।

चंद्रमा को अर्घ्य दान -

करवाचौथ की चांदनी रात में जब चंद्रमा उदय होता है तो करवाचौथ व्रत रखने वाली शादीशुदा महिलाएँ पूजा की सजी हुई थाली के साथ छत पर आ जाती हैं। इस दौरान वे चंद्रमा की पूजा करती हैं। वे चंद्रदेव को अर्घ्य देती हैं। करवाचौथ पर चंद्रमा की पूजा का बड़ा महत्व है। इस दिन चंद्रमा के दर्शन और पूजन के बाद महिलाएं व्रत तोड़कर अन्न-जल ग्रहण करती हैं। इस पूजन के दौरान पहले महिलाएँ छलनी से चंद्रमा के दर्शन करती हैं और फिर अपने पति को देखती हैं। इसके बाद पति के हाथों जल या मिठाई लेकर व्रत खोलती हैं। इस दिन चंद्रमा के साथ-साथ भगवान शिव एवं माँ पार्वती और भगवान गणेश और कार्तिकेय की पूजा होती है। ऐसा कहा जाता है कि इनकी पूजा करने से दांपत्य जीवन ख़ुशहाल बना रहता है और जीवनभर सुख-समृद्धि का आगमन होता है।

करवाचौथ कथा –

प्राचीन काल में एक साहूकार थे। साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। 1 दिन साहूकार की सातों बहू और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा। शाम को जब साहूकार और उसके बेटे खाना खाने आए तो उनसे अपनी बहन को भूखा नहीं देखा गया। उन्होंने अपनी बहन को भोजन करने के लिए बार-बार अनुरोध किया लेकिन बहन ने कहा कि मैं चंद्रमा को देखे बिना और उसकी पूजा किए बिना खाना नहीं खाऊंगी। ऐसे में सातों भाई नगर से बाहर चले गए और दूर जाकर आग जला दी। वापस घर आकर उन्होंने अपनी बहन को बोला कि देखो चाँद निकल आया है, अब उसे देख कर अपना व्रत तोड़ दो। बहन ने अग्नि को चाँद मानकर अपना व्रत तोड़ दिया। हालांकि छल से तोड़े गए इस व्रत के चलते उसका पति बीमार हो गया और घर का सारा पैसा उसकी बीमारी में खर्च हो गया। कुछ समय बाद जब साहूकार की बेटी को अपने भाइयों का छल और अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने वापस से गणेश भगवान की पूजा विधि-विधान के साथ की, अनजाने में खुद से हुई भूल की क्षमा मांगी, जिससे उसका पति ठीक हो गया और घर में वापस धन-धान्य वापस आ गया।

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