दीपावली पर लक्ष्मी-गणेश का इस मुहूर्त में ऐसे करें पूजन, मिलेगी समृद्धि और सौभाग्य
दीपावली हिंदू धर्म में मनाया
जाने वाला सबसे बड़ा त्यौहार है। यह त्यौहार धनतेरस से शुरू होकर भैया दूज पर समाप्त
होता है। 5 दिवसीय इस पर्व की शुरुआत धन तेरस से होती है, दूसरे दिन नरक चतुर्दशी यानि
छोटी दिवाली मनाई जाती है। तीसरे दिन दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है जबकि चौथे दिन
गोवर्धन पूजा और पांचवे दिन भैया दूज मनाई जाती है।
सनातन धर्म में दीपावली का विशेष
महत्व है। इस पर्व को हर साल बेहद हर्षोउल्लास के साथ समस्त भारत सहित दुनिया के उन
देशों में भी मनाया जाता है जहाँ भारतीय रहते हैं। इस दिन चंद्रमा और सूर्य एक साथ
तुला राशि में होते हैं और इसलिए अमावस्या का योग बनता है। इस दिन काली रात होती है
इसलिए दीपों को जलाकर उजाला किया जाता है। धनतेरस से भाई दूज तक करीब 5 दिनों तक चलने
वाला दीपावली का त्यौहार भारत और नेपाल समेत दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है।
दीपावली को दीप उत्सव भी कहा जाता है। क्योंकि दीपावली का मतलब होता है दीपों की पंक्ति।
दीपावली का त्यौहार अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है। इस दिन विशेषतौर पर धन
और सौभाग्य की देवी लक्ष्मी एवं रिद्धि सिद्धि के दाता श्री गणेश की पूजा की जाती है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि, इस दिन लक्ष्मी माता और गणेश जी की पूजा ही आखिर क्यों
की जाती है ? तो आइये जानते हैं इस त्यौहार से जुड़े कुछ ख़ास तथ्य।
दीपावली
पर बन रहा है दुर्लभ संयोग-
यह दीपावली अत्यंत शुभ होने वाली
है क्योंकि ग्रहों की युति से एक दुर्लभ योग का निर्माण हो रहा हैं। इस दिवाली चार
ग्रहों की युति बन रही हैं यानि एक ही राशि में चार ग्रह होंगे। दीपावली पर बुध, सूर्य,
मंगल और चंद्रमा तुला राशि में मौजूद रहेंगे।
दीपावली पर लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त : -
बृहस्पतिवार 4 नवम्बर 2021 को
ऑफिस या फैक्टरी में पूजन के लिए अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11:42 am से प्रारम्भ होगा,
12:26 pm तक रहेगा।
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त : 18:10 से 20:06 तक
अवधि : 1 घंटे 55 मिनट
दीपावली
महानिशीथ काल मुहूर्त :
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त
: 23:39 से 24:31 तक
अवधि : 0 घंटे 52 मिनट
सिंह लग्न मुहूर्त : 24:42 से 26:59 तक
क्यों
की जाती है लक्ष्मी-गणेश की पूजा -
देवताओं और असुरों के बीच में
समुद्र मंथन हुआ। हजारों साल चले इस मंथन में एक दिन महालक्ष्मी निकली। उस दिन कार्तिक
कृष्णपक्ष की अमावस्या थी। इसी कारण कार्तिक आमावस्या के दिन महालक्ष्मी की पूजा की
जाती है। बात करें इस दिन गणेश पूजन की तो शास्त्रों के अनुसार गणेश जी के विभिन्न
स्वरुप हैं और उन्होनें हर स्वरुप में दैत्यों का नाश किया है और देवताओं की रक्षा
की है। उन्हें रिद्धि सिद्धि का देवता भी माना जाता है और देवी लक्ष्मी के साथ उनकी
पूजा करने से विशेष आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। हमेशा गणेश जी की स्थापना लक्ष्मी
जी की बायीं तरफ की जाती है।
दीपावली
पर दीपों का महत्व -
दीपावली के दिन हर साल दीप जलाने
की परंपरा हमारे यहाँ वर्षों से चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि, इस दिन भगवान् श्री
राम रावण का वध करने के बाद चौदह साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों
ने उनका स्वागत हज़ारों दीप जालकर किया था। इसके बाद से ही हर साल उस दिन से दिए जलाने
की परंपरा चली आ रही है।
इस दिन दिए जलाने का दूसरा कारण
यह भी है कि, लोग लक्ष्मी माता के स्वागत के लिए अपने-अपने घरों को दिए से सजाते हैं।
विशेष रूप से घर के मुख्य द्वार पर दीप जलाना विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।
इसके साथ ही इस दिन से पितरों की रात शुरू हो जाती है, इसलिए उन्हें मार्ग दिखाने के
लिए भी दिए जलाए जाते हैं।
कब
मनाई जाती है दीपावली -
कार्तिक मास में अमावस्या के
दिन प्रदोष काल होने पर दीपावली (महालक्ष्मी पूजन) मनाने का विधान है। यदि दो दिन तक
अमावस्या तिथि प्रदोष काल का स्पर्श न करे तो दूसरे दिन दिवाली मनाने का विधान है।
यह मत सबसे ज्यादा प्रचलित और मान्य है।
एक अन्य मत के अनुसार, अगर दो
दिन तक अमावस्या तिथि, प्रदोष काल में नहीं आती है, तो ऐसी स्थिति में पहले दिन दीपावली
मनाई जानी चाहिए।
इसके अलावा यदि अमावस्या तिथि
का विलोपन हो जाए, यानी कि अगर अमावस्या तिथि ही न पड़े और चतुर्दशी के बाद सीधे प्रतिपदा
आरम्भ हो जाए, तो ऐसे में पहले दिन चतुर्दशी तिथि को ही दीपावली मनाने का विधान है।
दीपावली
पर कब करें लक्ष्मी पूजा-
देवी लक्ष्मी का पूजन प्रदोष
काल (सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त) में किया जाना चाहिए। प्रदोष काल के दौरान स्थिर
लग्न में पूजन करना सर्वोत्तम माना गया है। इस दौरान जब वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ
राशि लग्न में उदित हो तब माता लक्ष्मी का पूजन किया जाना चाहिए। क्योंकि ये चारों
राशि स्थिर स्वभाव की होती हैं। मान्यता है कि अगर स्थिर लग्न के समय पूजा की जाये
तो माता लक्ष्मी अंश रूप में घर में ठहर जाती है।
महानिशीथ काल के दौरान भी पूजन
का महत्व है लेकिन यह समय तांत्रिक, पंडित और साधकों के लिए ज्यादा उपयुक्त होता है।
इस काल में मां काली की पूजा का विधान है। इसके अलावा वे लोग भी इस समय में पूजन कर
सकते हैं, जो महानिशिथ काल के बारे में समझ रखते हों।
लक्ष्मी
पूजा की विधि-
दीपावली के दिन संध्या के समय
शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी, विघ्नहर्ता भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा और आराधना
की जाती है। पुराणों के अनुसार कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात में महालक्ष्मी स्वयं
भूलोक पर आती हैं और हर घर में विचरण करती हैं। इस दौरान जो घर हर प्रकार से स्वच्छ
और प्रकाशवान हो, वहां वे अंश रूप में ठहर जाती हैं इसलिए दीपावली पर साफ-सफाई करके
विधि विधान से पूजन करने से माता महालक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। लक्ष्मी पूजा के
साथ-साथ कुबेर पूजा भी की जाती है।
सबसे पहले पूजा घर को अच्छी तरह
से गंगाजल या गौमूत्र से साफ़ कर लें।
पूजा में शामिल होने वाले परिवार
के सभी सदस्य स्नान के बाद साफ़ कपड़े पहनें।
पूजा घर के पूर्व या उत्तर की
दिशा में सूती या ऊनि आसन पर बैठें।
पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और
लाल कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति रखें या दीवार पर लक्ष्मी
जी का चित्र लगाएं। चौकी के पास जल से भरा एक कलश रखें।
दीपावली के दिन हर साल नए लक्ष्मी-गणेश
की मूर्ति स्थापित करें।
पूजा की सभी वस्तुएं जैसे अगरबत्ती,
धूप, कपूर, घी, बाती, चंदन, मौली, रोली, पंचामृत, कच्चा दूध, सिन्दूर, मिठाइयां, फल
आदि को दूर्वा को पानी में भिगोकर पवित्र कर लें।
अब सबसे पहले गणेश जी की पूजा
करें, इसके बाद नवग्रहों की पूजा करें फिर कलश स्थापन करें, इसके बाद जिस व्यवसाय से
आप जुड़े हैं उस चीज की पूजा करें।
महालक्ष्मी पूजन पूरे परिवार
को एकत्रित होकर करना चाहिए।
महालक्ष्मी पूजन के बाद तिजोरी,
बहीखाते और व्यापारिक उपकरण की पूजा करें।
इसके बाद धन के देवता कुबेर की
पूजा करें और अंत में महालक्ष्मी जी की पूजा करें। इसके बाद घर के आँगन और मुख्य द्वार
पर दीप जलाएं और सभी में प्रसाद बांटें।
पूजन के बाद श्रद्धा अनुसार ज़रुरतमंद
लोगों को मिठाई और दक्षिणा दें।
दीपावली
की पौराणिक कथाएं -
कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान
श्री राम चंद्र जी चौदह वर्ष का वनवास काटकर और लंकापति रावण का नाश करके अयोध्या लौटे
थे। इस दिन भगवान श्री राम चंद्र जी के अयोध्या आगमन की खुशी पर लोगों ने दीप जलाकर
उत्सव मनाया था। तभी से दिवाली की शुरुआत हुई।
एक अन्य कथा के अनुसार नरकासुर
नामक राक्षस ने अपनी असुर शक्तियों से देवता और साधु-संतों को परेशान कर दिया था। इस
राक्षस ने साधु-संतों की 16 हजार स्त्रियों को बंदी बना लिया था। नरकासुर के बढ़ते
अत्याचारों से परेशान देवता और साधु-संतों ने भगवान श्री कृष्ण से मदद की गुहार लगाई।
इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का
वध कर देवता व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई, साथ ही 16 हजार स्त्रियों को कैद
से मुक्त कराया। इसी खुशी में दूसरे दिन यानि कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने
अपने घरों में दीये जलाए। तभी से नरक चतुर्दशी और दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन
भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इंद्र ने स्वर्ग को सुरक्षित
पाकर खुशी से दीपावली मनाई थी।
इसी दिन समुंद्र मंथन के दौरान
क्षीरसागर से लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं और उन्होंने भगवान विष्णु को पति के रूप में
स्वीकार किया था।
दीपावली
पर करें ये विशेष कार्य -
दीपावली के दिन प्रात:काल शरीर
पर तेल की मालिश के बाद स्नान करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से धन की हानि नहीं
होती है।
दीपावली के दिन वृद्धजन और बच्चों
को छोड़कर अन्य व्यक्तियों को भोजन नहीं करना चाहिए। शाम को महालक्ष्मी पूजन के बाद
ही भोजन ग्रहण करें।
दीपावली पर पूर्वजों का पूजन
करें और धूप व भोग अर्पित करें। प्रदोष काल के समय दीपक जलाकर पितरों को मार्ग दिखाएं।
ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
दीपावली से पहले मध्य रात्रि
को स्त्री-पुरुषों को गीत, भजन और घर में उत्सव मनाना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने
से घर में व्याप्त दरिद्रता दूर होती है।
Comments
Post a Comment