लग्न भाव विचार - lagana bhava
प्रथम भाव को इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह मनुष्य के व्यक्तित्व, स्वभाव, आयु, यश, सुख और मान-सम्मान आदि बातों का बोध कराता है।
प्रथम भाव को लग्न या तनु भाव भी कहा
जाता है। हर व्यक्ति के जीवन का संपूर्ण दर्शन लग्न भाव पर निर्भर करता है। नाम, प्रसिद्धि
और सामाजिक प्रतिष्ठा का विचार भी लग्न से किया जा सकता है।
जब कोई
भी व्यक्ति जन्म लेता है तो उस समय विशेष में आकाश में स्थित राशि, नक्षत्र और ग्रहों
की स्थिति के प्रभाव को ग्रहण करता है। दूसरे शब्दों में जन्म के समय पूर्वी क्षितिज
पर जो राशि उदय होती है, वही व्यक्ति का लग्न बन जाता है। लग्न के निर्धारण के बाद
ही कुंडली का निर्माण होता है। जिसमें ग्रहों की निश्चित भावों, राशि और नक्षत्रों
में स्थिति का पता चलता है। इसलिए बिना लग्न के जन्म कुंडली की कल्पना नहीं की जा सकती
है।
शारीरिक
संरचना:- प्रथम भाव से व्यक्ति की शारीरिक बनावट और कद-काठी के बारे में पता चलता है।
यदि प्रथम भाव पर जलीय ग्रहों का प्रभाव अधिक होता है तो व्यक्ति मोटा होता है। वहीं
अगर शुष्क ग्रहों और राशियों का संबंध लग्न पर अधिक रहता है तो जातक दुबला होता है।
ये भी पढ़े: सूर्य से संबंधित व्यापार - Sun Related Business
स्वभाव:-
किसी भी व्यक्ति के स्वभाव को समझने के लिए लग्न का बहुत महत्व है। लग्न मनुष्य के
विचारों की शक्ति को दर्शाता है। यदि चतुर्थ भाव, चतुर्थ भाव का स्वामी, चंद्रमा, लग्न
व लग्न भाव के स्वामी पर शुभ ग्रहों का प्रभाव होता है तो व्यक्ति दयालु और सरल स्वभाव
वाला होता है। वहीं इसके विपरीत अशुभ ग्रहों के प्रभाव से व्यक्ति क्रूर प्रवृत्ति
का होता है।
आयु और
स्वास्थ्य:- प्रथम भाव व्यक्ति की आयु और सेहत को दर्शाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार
जब लग्न, लग्न भाव के स्वामी के साथ-साथ सूर्य, चंद्रमा, शनि और तृतीय व अष्टम भाव
और इनके स्वामी मजबूत हों तो, व्यक्ति को दीर्घायु एवं उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति
होती है। वहीं यदि इन घटकों पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो या कमजोर हों, तो यह स्थिति
व्यक्ति की अल्पायु को दर्शाती है।
बाल्यकाल:-
प्रथम भाव से व्यक्ति के बचपन का बोध भी होता है। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार यदि लग्न
के साथ लग्न भाव के स्वामी और चंद्रमा पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, तो व्यक्ति को
बाल्यकाल में शारीरिक कष्ट उठाने पड़ते हैं। वहीं शुभ ग्रहों के प्रभाव से बाल्यावस्था
अच्छे से व्यतीत होती है।
मान-सम्मान:- प्रथम भाव मनुष्य के मान-सम्मान, सुख और यश को भी दर्शाता है। यदि लग्न, लग्न भाव का स्वामी, चंद्रमा, सूर्य, दशम भाव और इनके स्वामी बलवान अवस्था में हों, तो व्यक्ति को जीवन में मान-सम्मान प्राप्त होता है।
Comments
Post a Comment