नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) के दिन की जाती है यमराज की पूजा, जाने दीपदान का महत्व

 

नरक चतुर्दशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाने वाला एक त्यौहार है। इसे नरक चौदस, रूप चौदस और रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने भौमासुर यानी नरकासुर का वध किया था। इसके साथ ही श्रीकृष्ण ने लगभग 16 हजार महिलाओं को मुक्त भी कराया था। ऐसे में इस दिन सभी लोग काफी खुश थे और इसी खुशी को मनाने के लिए दीप जलाकर उत्सव मनाया गया था। इसी परंपरा को हर साल मनाया जाता है और लोग इस दिन अपने घरों में दीये जलाते हैं। इस दिन महिलाएं व्रत भी रखती हैं और भगवान से अपने घर में सुख-समृद्धि की कामना भी करती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन कौन से काम करने चाहिए? आखिर कौन से ऐसे काम हैं, जिन्हें इस दिन करना काफी शुभ माना जाता है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण भी होती है? शायद नहीं, तो चलिए हम आपको बातते हैं।

स्नान करना -

नरक चतुर्दशी के दिन को रूप चौदस भी कहा जाता है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर उबटन लगाकर और पानी में नीम के पत्ते डालकर स्नान करना काफी शुभ माना जाता है। इसलिए इस दिन ऐसा करना चाहिए।

यम के नाम का दिया जलाएं -

अकाल मृत्यु और रोग आदि कष्टों की निवृति के लिए नरक चतुर्दशी के दिन यम की पूजा होती है। इस दिन शाम के समय दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर 4 मुंह के दीपक को खील आदि की ढेरी के ऊपर रख दें, ऊं यमदेवाय नमः कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें। 

चौदह दीये जलाने की मान्यता-

यम के दीये के अलावा इस दिन मान्यता ये भी है कि इस दिन सूर्यास्त के बाद लोग अपने घरों के दरवाजों पर चौदह दीये जलाकर दक्षिण दिशा की तरफ इनका मुंह करना चाहिए। साथ ही पूजा-पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से काफी लाभ मिलते हैं।

कालिका मां की विशेष पूजा -

नरक चतुर्दशी के दिन को काली चौदस भी होती है और ये दिन माता कालिका के नाम का होता है। इस दिन घर में मां कालिका के नाम की विशेष पूजा करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से संताप मिट जाता है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

भगवान कृष्ण की पूजा-

जैसा कि नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। ऐसे में इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा करना काफी शुभ माना जाता है। श्रीकृष्ण की पूजा करने से सभी तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

नरक चतुर्दशी का महत्व और पौराणिक कथाएं -

नरक चतुर्दशी के दिन दीप प्रज्ज्वलन का धार्मिक और पौराणिक महत्व है। इस दिन संध्या के समय दीये की रोशनी से अंधकार को प्रकाश पुंज से दूर कर दिया जाता है। इसी वजह से नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली भी कहते हैं। नरक चतुर्दशी के दिन दीये जलाने के संदर्भ में कई पौराणिक और लौकिक मान्यताएं हैं।

राक्षस नरकासुर का वध :-

पुरातन काल में नरकासुर नामक एक राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवता और साधु संतों को परेशान कर दिया था। नरकासुर का अत्याचार इतना बढ़ने लगा कि उसने देवता और संतों की 16 हज़ार स्त्रियों को बंधक बना लिया। नरकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर समस्त देवता और साधु-संत भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने सभी को नरकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया। नरकासुर को स्त्री के हाथों से मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और उसकी कैद से 16 हजार स्त्रियों को आजाद कराया। बाद में ये सभी स्त्री भगवान श्री कृष्ण की 16 हजार पट रानियां के नाम से जानी जाने लगी। नरकासुर के वध के बाद लोगों ने कार्तिक मास की अमावस्या को अपने घरों में दीये जलाए और तभी से नरक चतुर्दशी और दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा।

दैत्यराज बलि की कथा :

एक अन्य पौराणिक कथा में दैत्यराज बलि को भगवान श्री कृष्ण द्वारा मिले वरदान का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि के बीच दैत्यराज बलि के राज्य को 3 कदम में नाप दिया था। राजा बलि जो कि परम दानी थे, उन्होंने यह देखकर अपना समस्त राज्य भगवान वामन को दान कर दिया। इसके बाद भगवान वामन ने बलि से वरदान मांगने को कहा। दैत्यराज बलि ने कहा कि हे प्रभु, त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि में इन तीनों दिनों में हर वर्ष मेरा राज्य रहना चाहिए। इस दौरान जो मनुष्य में मेरे राज्य में दीपावली मनाए उसके घर में लक्ष्मी का वास हो और चतुर्दशी के दिन नरक के लिए दीपों का दान करे, उनके सभी पितर नरक में ना रहें और ना उन्हें यमराज यातना ना दें। राजा बलि की बात सुनकर भगवान वामन प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया। इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन शुरू हुआ।

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