क्या होता है खरमास, इस दौरान क्यों नहीं किए जाते कोई भी शुभ कार्य?
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार हर
साल मार्गशीर्ष और पौष माह के बीच खरमास लगता है। खरमास लगते ही सभी तरह के शुभ और
मांगलिक कार्यों में कुछ समय के लिए पाबंदी लग जाती है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जब
सूर्य धनु राशि में प्रवेश करते हैं तो उस समय से लेकर मकर राशि में प्रवेश करने तक
खरमास लग जाता है। खरमास को शुभ नहीं माना जाता है। इस बार खरमास 14 जनवरी तक रहेगा,
जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे तब जाकर खरमास खत्म होगा। आइए जानते हैं
खरमास का हिंदू धर्म में क्यों है इतना महत्व है।
क्या
होता है खरमास -
सूर्य के धनु या मीन राशि
में गोचर करने की अवधि को ही खरमास कहते हैं। सूर्यदेव जब भी देवगुरु बृहस्पति की राशि
धनु या मीन पर भ्रमण करते हैं तो उसे प्राणी मात्र के लिए अच्छा नहीं माना जाता और
शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं। गुरु सूर्यदेव का गुरु हैं, ऐसे में सूर्यदेव एक
महीने तक अपने गुरु की सेवा करते हैं।
खरमास
का अर्थ -
खरमास में खर का अर्थ 'दुष्ट'
होता है और मास का अर्थ महीना होता है, इसे आप 'दुष्टमास' भी कह सकते हैं। इस मास में
सूर्य बिलकुल ही क्षीण होकर तेज हीन हो जाते हैं। मार्गशीर्ष और पौष का संधिकाल खरमास
को जन्म देता है, मार्गशीर्ष माह का दूसरा नाम 'अर्कग्रहण भी है' जो कालान्तर में अपभ्रंश
होकर अर्गहण हो गया। अर्कग्रहण एवं पौष के मध्य ही यह खरमास पड़ता है। इन माहों में
सूर्य की किरणें कमज़ोर हो जाती हैं इनके धनु राशि में प्रवेश के साथ ही राशि स्वामी
गुरु का तेज भी प्रभावहीन रहता है और उनके स्वभाव में उग्रता आ जाती है।
देवगुरु
बृहस्पति के स्वभाव में आ जाती है उग्रता -
इतना ही नहीं, ये भी कहते हैं
कि इस दौरान गुरु के स्वभाव में उग्रता आ जाती है। हिंदू धर्म में सूर्य को महत्वपूर्ण
कारक माना जाता है। ऐसे में सूर्य की कमजोर स्थिति को शुभ नहीं माना जाता। बृहस्पति
को देवगुरु कहा जाता है और उनके स्वभाव में उग्रता शुभ नहीं होती। इसलिए खरमास मास
में किसी भी तरह के मांगलिक कार्य को रोक लगा दिया जाता है।
खरमास
पर क्यों नहीं किए जाते शुभ कार्य-
गुरु के स्वभाव को भी उग्र कर
देने वाले इस माह को खरमास-दुष्टमास नाम से जाना जाता है। देवगुरु बृहस्पति के उग्र
अस्थिर स्वभाव एवं सूर्य की धनु राशि की यात्रा और पौष मास के संयोग से बनने वाले इस
मास के मध्य शादी-विवाह, गृह आरंभ, गृहप्रवेश, मुंडन, नामकरण आदि मांगलिक कार्य शास्त्रानुसार
निषेध कहे गए हैं।
खरमास
में कर सकते हैं ये कार्य -
खरमास में व्यक्ति अन्नप्राशन,
जातकर्म और सीमान्त जैसे आदि का कार्य इस कालखण्ड में कर सकते हैं। इन कार्यों पर खरमास
के समय कोई रोक नहीं है।
नियमित जैसे संध्या वंदन, पूजा-पाठ,
दान आदि कार्य खरमास के समय कर सकते हैं। ऐसे कार्यों में खरमास का कोई बंधन नहीं होता
है।
अगर व्यक्ति गया में किसी श्राद्ध
कर्म या तर्पण विधि करना चाहते हैं तो खरमास में यह कार्य कर सकते हैं।
कोर्ट मैरिज करने वालों के लिए
खरमास बाधक नहीं होता है इसलिए अगर कोई कोर्ट मैरिज करना चाहते हैं तो खरमास के समय
कर सकते हैं।
खरमास
लगने पर क्या करें -
राज्यपद की लालसा रखने वाले,
बेरोजगार नवयुवकों अथवा अधिकारियों से प्रताडित लोगों को प्रातः सूर्य की आराधना
करनी चाहिए।
रविवार के दिन सूर्य मंदिर अथवा
भगवान विष्णु के मंदिर में जाकर लाल रंग का वस्त्र दान करें।
आदित्य हृदय स्तोत्र का नियमित
पाठ करें।
ब्राह्मण को शक्कर दान करें और गाय को रोटी खिलाएं।
प्रतिदिन माथे पर केसर का तिलक लगाएं।
Comments
Post a Comment