छाया ग्रह राहु केतु किस तरह फल देते हैं, ज्योतिषीय मंथन
राहु और केतु दोनों ही छाया ग्रह
हैं राहु की तुलना सर्प से की गई है। राहु को एक सिर और केतु उसके धड़ के रूप में माना
जाता है। राहु केतु की अपनी कोई भी राशि नहीं होती राहु केतु जिस जिस राशि में बैठते
हैं। उसके स्वामी का स्वरूप धारण कर लेते हैं और जिस ग्रह के साथ बैठते हैं, उसी के
अनुसार अपना फल देने लगते हैं। और जिन ग्रहों का इन पर प्रभाव होता है उसी के अनुरूप
वैसा फल देना शुरू कर देते हैं।
राहु की उच्च राशि मिथुन
(Gemini) है और केतु की उच्च राशि धनु (Sagittarius) है परंतु कुछ ज्योतिषी राहु की
उच्च राशि वृषभ (Taurus) को मानते हैं और केतु की उच्च राशि वृश्चिक (Scorpio) को मानते
हैं। परंतु व्यावहारिक तौर पर राहु को मिथुन राशि में अधिक अच्छे फल देते हुए देखा
गया है बजाय की वृषभ राशि के।
बुध ग्रह को बुद्धि का कारक माना
जाता है और राहु के पास भी मस्तिष्क ( मस्तक ) है राहु भी सिर है राहु के पास भी दिमाग
है बुद्धि है जब यह बुध की राशि मिथुन राशि में होता है। तो यह बहुत ही शुभ फल देने
लगता है व्यक्ति का मस्तिष्क बहुत ही तेज हो जाता है। ऐसा व्यक्ति काफी शातिर हो जाता
है। क्योंकि बुद्धि और राहु का मस्तिष्क दोनों मिल जाते हैं तो यह बहुत ही अच्छे फल
देने लगते हैं राहु से प्रभावित व्यक्ति बहुत ही अधिक चतुर होता है बुद्धि का बेहतर
प्रयोग करना जानता है।
राहु को मुख्य रूप से तीसरे छठे
दसवें और ग्यारहवें भाव में शुभ फल देते हुए देखा गया है दसवें भाव में राहु बहुत ही
अच्छे फल देने वाला तथा राजयोग कारक माना गया है दसवां भाव कुंडली का सबसे शक्तिशाली
होता है। दसवें भाव में राहु बहुत ही शुभ फल देता है। परन्तु राहु की महादशा बीत जाने
के बाद और सामान्य तौर पर 42 वर्ष के पश्चात राहु अपने फल दिखाना शुरू कर देता है।
बशर्ते कि यह नवमांश कुंडली में नीच राशि का या शत्रु राशि का नहीं होना चाहिए।
इसके अलावा राहु शनि की राशि
मकर और कुंभ में भी अशुभ फल नहीं देता राहु शनि के अनुसार काम करता है और केतु बृहस्पति
या मंगल के अनुसार काम करता है राहु मतलब ऐसी बुद्धि, राहु को जो चाहिए वो चाहिए, राहु
कैसे भी करके अपना काम निकलवाने में सक्षम होता है। जो राहु, भगवान विष्णु जी के सामने देवताओं की पंक्ति
में बैठकर अमृत पीने का दुस्साहस कर सकता है वो राहु कुछ भी करवा सकता है राहु से प्रभावित
व्यक्ति कुछ भी करने में सक्षम होता है तो राहु कलयुग में बहुत ही शक्तिशाली ग्रह माना
जाता है।
राहु केतु को अचानक फल देने के
लिए जाना जाता है राहु और केतु ही ऐसे ग्रह है जो अचानक फल देने की क्षमता रखते हैं
अचानक होने वाली घटनाएं चाहे वह शुभ हो या अशुभ हो इनके पीछे राहु ही जिम्मेदार होता
है जैसे अचानक से लॉटरी (Lottery) निकल जाना, गढ़ा धन मिल जाना, किसी को हार्ट अटैक
आ जाना या अकाल मृत्यु हो जाना तथा सभी प्रकार की अचानक घटनाएं राहु के कारण ही होती
है।
यदि कुंडली में राहु केतु शुभ
स्थिति में हैं तो व्यक्ति को सफलता प्राप्त करने के लिए कम मेहनत करनी पड़ती है और
कम समय में और कम मेहनत से व्यक्ति सफल हो जाता है कुंडली में राहु शुभ है या अशुभ
है इसके लिए यह देखना होता है कि राहु किस भाव में है और किस राशि में है सामान्यतः
वृश्चिक राशि और धनु राशि में यदि राहु स्थित है तो ऐसा राहु अशुभ माना जाता है।
और लग्न से चतुर्थ, पंचम, सप्तम
और नवम भाव में स्थित राहु, इन भावों को कमजोर करता है तथा इन भावों से संबंधित फलों
को बिगड़ता है परंतु राहु केतु के फलों का अध्ययन करने से पहले लग्न कुंडली में इसके
बलाबल को देखना भी अति आवश्यक है अर्थात राहु – केतु कुंडली में कितने अंशों अर्थात
डिग्री पर स्थित हैं यह 29-30 डिग्री पर स्थित है या फिर 10 से 20 डिग्री पर स्थित
है। तो अंशो को देखना बहुत ज्यादा आवश्यक होता है तो उसी के अनुसार ही इनके फल कम ज्यादा
का अनुमान लगाया जा सकता है, जब राहु केतु अपने फल देने लगते है तो यह पूरी क्षमता
के साथ फल देते हैं परंतु जब यह कुंडली में किसी भाव को बिगाड़ते है या उससे संबंधित
फलों को खराब करते है तो भी पूरी ताकत के साथ उस भाव को बिगाड़ने का कार्य करते हैं।
राहु केतु यदि नीच राशि में स्थित
हैं तो इनके अशुभ फल बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं और यदि अशुभ राहु केतु के प्रभाव में
कुंडली के शुभ ग्रह आ जाते है तो कुंडली की स्थिति काफी हद तक कमजोर हो जाती है।
राहु और शनि की युति को कष्टकारी
माना गया है देखने में यह भी आया है कि राहु की महादशा में शनि की अंतर्दशा या फिर
शनि की महादशा में राहु की अंतर्दशा 90 से 95% लोगों को खराब फल प्रदान करती है। अब
वह खराब फल किस प्रकार के होंगे यह कुंडली का अध्ययन करके ही जाना जा सकता है। कि राहु
केतु और शनि कुंडली के किस भाव से संबंध रखते हैं और किस भाव में स्थित हैं। राहु-केतु
नैसर्गिक रूप से पापी और क्रूर ग्रह हैं। खासकर के अष्टम भाव का राहु बहुत ज्यादा कष्टकारी
माना गया है अष्टम भाव में जब राहु स्थित होता है तो यह बहुत बड़ी बड़ी समस्याएं अचानक
से उत्पन्न करता है।
राहु
केतु के शुभ अशुभ फल -
राहु और केतु जब अपने अधिष्ठित राशि अर्थात जिस ग्रह की राशि में स्थित हैं, उसके स्वामी के साथ संबंध करें और यह संबंध केंद्र या त्रिकोण में हो तो एक योगकारक ग्रह के समान फल देते हैं।
यदि राहु केंद्र में बैठकर त्रिकोण के स्वामी के साथ संबंध करें तो यह एक शुभ स्थिति होगी परंतु त्रिकोण में बैठकर केंद्र के स्वामी के साथ संबंध करें तो यह थोड़ी कम योगकारक स्थिति होगी। परंतु यदि यह संबंध अष्टम भाव में या बारहवें भाव में बनता है तो यह अच्छी स्थिति नहीं कही जा सकती।
राहु या केतु नैसर्गिक शुभ ग्रह
की राशियों में शुभ फल प्रदान करते है परंतु यह कुंडली में केंद्र या त्रिकोण के स्वामी
होने चाहिए।
यदि कोई ग्रह केंद्र या त्रिकोण
के स्वामी होने के साथ-साथ तीसरे, छठे, आठवें और बारहवें भाव का भी स्वामी है और फिर
राहु या केतु जैसे ग्रह इन ग्रहों की राशियों में स्थित होंगे तो इनके फलों में अशुभता
आ जाएगी।
अष्टम भाव में राहु ज्यादातर
अशुभ फल ही प्रदान करता है।
जब राहु सप्तम भाव में स्थित
होता है तो यह अशुभ फल ही प्रदान करता है।
जब राहु केंद्र में स्थित होता
है तो राहु की महादशा में त्रिकोण भाव के स्वामियों की अंतर्दशा शुभ फल प्रदान करती
है।
जब केंद्र के स्वामियों की महादशा
होती है और राहु या केतु की अंतर्दशा होती है तब भी राहु-केतु के शुभ फल प्राप्त होते
हैं।
इसी प्रकार केंद्र में बैठे हुए
राहु या केतु की महादशा में शुभ फल प्राप्त होते हैं यदि वह नीच राशि का न हो।
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